कितने किरदार है मुझमें
मै नहीं जान पाता हूं
कोई पूछता है मुझसे कौन हो तुम
हर बार कुछ नया बताता हूं
अपनी सख्सियत क्या है
हर बार खुदसे यही सवाल दोहराता हूं
कभी दोस्त कभी भाई
कभी फरिश्ता कभी गुनेहगार बन जाता हूं
लोगो ने रचा है मुझको या
कुदरत ने नहीं जान पाता हूं
हर वक़्त एक नया किरदार गड़ता है
उन्हीं किरदारों में ये उम्र बिताता हूं
पुछु कभी आईने से
कौन हूं मैं
आइना कुछ बताता
मा कुछ बताती है
दोस्त कुछ बताते है
सोचता हूं खोजू जवाबो को इन सवालों से
पर इन जवाबो से और उलझता जाता हूं
कितने किरदार है मुझ में
मैं खुद नहीं जान पाता हूं
अभी जिया ही क्या है
अभी तो बहुत वक़्त बिताना है
बचे है अभी कई अधूरे किरदार
उनको निभाना है
कई किरदारों को जीते जाना है
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