रविवार, 25 सितंबर 2011

आदमी

मर मर कर जीता और जीकर मरता
हर दिन ज़िन्दगी खोता आदमी

जीता है की मरता न जाने आदमी
इन्सान से डरता इन्सान क्यों?
न जाने आदमी ,

हंस हस कर सामने
पीछे पीछे रोता आदमी
कभि पिता तो कभी बेटा
कभी पति तो कभी मित्र

सब बनकर कर्तव्यों की बाट जोहता है आदमी


गुरुवार, 22 सितंबर 2011

सपने

कभी सोचता हु ,सपने समेट लू
पर सपने मुरझाये हुए गुलाब की
पंखुरी की तरह झड़ जाते है
मेरे छुते ही बिखर जाते है
कभी आते है तो कभी जाते
कभी हंसते तो कभी रुलाते 
कभी प्यार का अहसास कराते
कभी प्यार का पैगाम लाते
कभी सोचता हूँ ,सब बेगाने है
मेरे सपने ही मेरी ज़िन्दगी के पैमाने है

ख्वाहिसे

इन मौसमो को अब बदलने दो
उमंगो को अब पंख दो
कुछ देर यूही मचलने दो
बहुत दिने से ख्वाहिसे शांत बैठी है
अब इन्हें खुले आस्मां के तले टहलने दो
 दिलो में जो दरिया जम चूका है
अब उसे बिखरने दो
सुर्ख हवाओ का दमन भी इंतज़ार में है
इन हवाओ को मुझमे और मुझे इन हवाओ में घुलने दो
                                                        :-आनर्त झा


रविवार, 18 सितंबर 2011

हमदम

बेकरार निगाहों में ना जाने,किसका इंतज़ार रहता है
ना जाने क्यों,कोई दिल के इतने पास रहता है 

की ना हो सामने कोई,फिर भी किसी के होने का अहसास रहता है
हर धडकन लेती है नाम उसका,ना जाने क्यों................
 
मेरा दिल उसकी हर आहट को बेकरार रहता है, कहता है
दिल मेरा मुझसे,क्यों नहीं वो हमदम,हमेशा मेरे साथ रहता है

शुक्रवार, 16 सितंबर 2011

वक़्त

नहीं थमता है वक़्त किसी के लाख चाहने से
नहीं लौटता है कोई होश में मैखाने से
वैसे तो बहुत कुछ है पाने को
ढून्ढ लो तो ख़ुसिया है
न ढूँढो तो गम ही गम है ज़माने में
- आनर्त झा

ज़िन्दगी

कुछ पल तो करीब आना
कुछ पल को नज़र मिलाना ज़िन्दगी
कुछ पल तो ठहर जाना
कुछ पल को मुस्कुराना ज़िन्दगी

कुछ अनछुए ,अनसुलझे
सवालो की गठरी लिए चलता हु
गर वक़्त मिले तो मेरे चंद सवालो के
जवाब देने आना मेरी ज़िन्दगी
:- आनर्त झा

एक मुलाकात किस्मत के साथ

बस युही किस्मत से इक दिन मुलाकात हो गयी
बस किस्मत को देखकर मुझसे न रहा गया
मेरी जिग्यासाओ का बांध टूट गया
मेरी जहन में आया सवाल, मेरी जुबान से छुट गया
मैंने पूछा किस्मत से की तो क्यों किसी के साथ आती है
किसी के साथ होती  है तो हसाती है
न हो किसी के साथ तो खूब सताती है, रुलाती है
मैंने सुना है की किस्मत का लिखा
विधि का विधान होता है
कोई अज्ञानी तो कोई विद्वान होता है
बस अब किस्मत से भी रहा न गया
किस्मत मुझसे से बोली
नहीं कुछ विधि का विधान होता है
मैं उसके साथ होती हु जिसके बाजुओ में दम
और सीने में स्वाभिमान होता है
मैं तो बस बहाना हु किसी का
हर कोई अपने कर्मो हसता और रोता है 

आनर्त झा


रविवार, 14 अगस्त 2011

देशभक्ति

बलिदानों की बल्वेदी से  ,वीरो की वीरगति से  
राजपूतो  की हुनकरो से  ,मराठाओ की तलवारों से 
ये आज़ादी मिली है , इसे खोने ना देगे 
लो ये प्रतिज्ञा आज की कुछ गलत होने ना देगे 
हमारो देशभक्तों के क़ुरबानी को व्यर्थ होने ना देगे