मर मर कर जीता और जीकर मरता
हर दिन ज़िन्दगी खोता आदमी
जीता है की मरता न जाने आदमी
इन्सान से डरता इन्सान क्यों?
न जाने आदमी ,
हंस हस कर सामने
पीछे पीछे रोता आदमी
कभि पिता तो कभी बेटा
कभी पति तो कभी मित्र
सब बनकर कर्तव्यों की बाट जोहता है आदमी
हर दिन ज़िन्दगी खोता आदमी
जीता है की मरता न जाने आदमी
इन्सान से डरता इन्सान क्यों?
न जाने आदमी ,
हंस हस कर सामने
पीछे पीछे रोता आदमी
कभि पिता तो कभी बेटा
कभी पति तो कभी मित्र
सब बनकर कर्तव्यों की बाट जोहता है आदमी