गुरुवार, 22 सितंबर 2011

ख्वाहिसे

इन मौसमो को अब बदलने दो
उमंगो को अब पंख दो
कुछ देर यूही मचलने दो
बहुत दिने से ख्वाहिसे शांत बैठी है
अब इन्हें खुले आस्मां के तले टहलने दो
 दिलो में जो दरिया जम चूका है
अब उसे बिखरने दो
सुर्ख हवाओ का दमन भी इंतज़ार में है
इन हवाओ को मुझमे और मुझे इन हवाओ में घुलने दो
                                                        :-आनर्त झा


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