रविवार, 25 सितंबर 2011

आदमी

मर मर कर जीता और जीकर मरता
हर दिन ज़िन्दगी खोता आदमी

जीता है की मरता न जाने आदमी
इन्सान से डरता इन्सान क्यों?
न जाने आदमी ,

हंस हस कर सामने
पीछे पीछे रोता आदमी
कभि पिता तो कभी बेटा
कभी पति तो कभी मित्र

सब बनकर कर्तव्यों की बाट जोहता है आदमी


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