रविवार, 15 अप्रैल 2012

लम्हा

जख्म कुछ इस कदर है ,साँस थमी सी है ,
हर आरजू नयी है ,फिर भी आँखों में नमी सी है !
लम्हा लम्हा कुछ इस किदर  गुजर रहा है
सूरज को अब असमान निगल रहा है
अब तो चाँद भी मेरे चाँद से मिलाने को बेताब है
तुम आओगी, इस चाँद को भी आस है
तुम्हारे आने के अहसाश को जुदा मत होने देना
मेरे चाँद को चाँद से खफा मत होने देना

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