शुक्रवार, 16 सितंबर 2011

एक मुलाकात किस्मत के साथ

बस युही किस्मत से इक दिन मुलाकात हो गयी
बस किस्मत को देखकर मुझसे न रहा गया
मेरी जिग्यासाओ का बांध टूट गया
मेरी जहन में आया सवाल, मेरी जुबान से छुट गया
मैंने पूछा किस्मत से की तो क्यों किसी के साथ आती है
किसी के साथ होती  है तो हसाती है
न हो किसी के साथ तो खूब सताती है, रुलाती है
मैंने सुना है की किस्मत का लिखा
विधि का विधान होता है
कोई अज्ञानी तो कोई विद्वान होता है
बस अब किस्मत से भी रहा न गया
किस्मत मुझसे से बोली
नहीं कुछ विधि का विधान होता है
मैं उसके साथ होती हु जिसके बाजुओ में दम
और सीने में स्वाभिमान होता है
मैं तो बस बहाना हु किसी का
हर कोई अपने कर्मो हसता और रोता है 

आनर्त झा


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