गुरुवार, 24 अक्तूबर 2019

जिन्दगी

जिंदगी है या सफर
बस अधुरा सा है गुज़र रहा
हर एक जिस्म यहां बेजान सा 
यहां से वहां भटक रहा
क्या पाना है कहा जाना है किसी को नहीं पता
कई ख्वाहिश है अधूरी सी
पाने को है बहुत कुछ 
 
तो ज़रा ये भी समझना 
जीवन दरिया है बहता हुआ
इक बार बह गया तो वापिस ना आएगा
ये वक्त है साहिब निकल गया 
तो लौट ना पाएगा
रह जाएगी सिर्फ यादें 
ये जिस्म भी एक दिन माटी हो जाएगा

जिंदगी गर सफ़र है
तो सफ़र को सफ़र सा जिया जाए
जो मिले जैसा मिले जब मिले 
उसी पल उसे अपना बना लो
हर पल खुश रहो 
गर दिल टूटे कभी थोड़ा रोलो 
अगले ही पल फिर मुस्कुरालों
गमों का अंधेरा तो हर तरफ़ है
तो क्यों ना खुशियों का चिराग
तुम भी जला लो

: आनर्त झा