बुधवार, 1 जनवरी 2020

बीसवीं सदी का हिंदुस्तान

बीसवीं सदी का हिन्दुस्तान देखा है

किसी को मेहमान किसी को मेज़बान देखा है
मयखाने को गुलज़ार देखा है
घरों में कैद रिश्तों की डोर से बधा चलता फिरता समसान देखा है

हा मैंने नया हिंदुस्तान देखा है
रिश्तों को घुटते मरते सिसकते देखा है
पैसे कमाने की चाहत में 
खुदको मारता इंसान देखा है 

हा मैंने नया हिंदुस्तान देखा है
रास्ते बड़े बढ़े देखे है मेने 
फिर भी इन सड़कों पर घिसटता 
अजीब सी दौड़ में भागता इंसान देखा है

हा मैंने नया हिंदुस्तान देखा है
कल सुना था हिंदुस्तान दौड़ा था
कुछ किलोमीटर जलकर 
हां मैंने चलते फिरते लोगो से भरा
कब्रिस्तान देखा है






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