रविवार, 1 मार्च 2020

अनकहे अल्फ़ाज़

न जाने दिली जज्बात कुछ अलग से  एहसास 
कराने वाले अनकहे अल्फ़ाज़ कहा गए 

आंखो की आश्रुधरा बह जाए 
आंखे से पड़े तो सारा नज़ारा नज़रों के सामने आए 
मां की बात लिखी हो पन्नों में
तो मां के होने का अहसास कराए

जो बात थी उनमें वो कहा से लाए 
खो गए है सारे खत ज़माने से 
सो गए सारे अहसास पुराने से 

खो गई चिठ्ठी इस बढ़ते दौर में 
रह गई मिट्टी वतन की इसी ओर में
अब ना वो चिठ्ठी में लिखे जज्बात 
कहीं लिखे जाते है 
ना कहीं से जाते है ना कहीं पे आते है

बातें तो अब भी लिखी जाती हैं
बातो में वो बातें नहीं है

कभी वक्त मिले तो देखना पन्नों में लिखकर 
कलेजा बाहर निकल आता है 
सांसे सहम सी जाती है 
दिल के जज़्बात जब पेपर में उतरकर आते है

अरे यही तो वो है जो खत कहलाते है
दिलो से दिलो को जोड़ते है 
कम शब्दों में सब कह जाते है 

ये खत है साहब जो अब सिर्फ यादों में 
ना तो अब कहीं से आते है ना ही कहीं को जाते है





कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें