हजारों सपने बेचकर आया हूं
तब में यह पहुंच पाया हूं
बचपन के सुनहरे सपने को
बचपन की उन सकरी गलियों में,
छोड़कर आया हूं
रोटी कमाने की दौड़ में
रास्तों मोड़कर आया हूं
बुलाते है वो रास्ते अभी भी मुझको
ना जाने क्यों
क्या उन रास्तों का कुछ उधार छोड़कर आया हूं
अब कौन समझाए उन रास्तों को
की जिस शक्स को जानते हैं वो
उसको तो मै कबका कहा छोड़कर आया हूं
हजारों सपने बेचे है खवाहिसो को जलाया है
तब कहीं जाकर मैंने जिंदगी जीने का सामान जुटाया है
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