सोमवार, 3 फ़रवरी 2020

प्यार महफ़िल और रंजिश

प्यार महफिल और रंजिश तीनों ही का अजीब दोस्ताना है 
जब होती हैं तो इंसान इंसान नहीं रहता

दिल दिल और दिमाग दिमाग दिमाग नहीं रहता
कहना कुछ चाहता है दिल कह कुछ देता

निकम्मा बन जाता है इश्क में आदमी कि
इस दुनिया में इश्क के सिवा उसका कुछ नहीं रहता

और महफिले खुद से खुद को तोड़ती हैं 
किसी और का रुख मोड़ती हैं

रंजिशें तो गजब कहर ढाते हैं 
अपनो से ही अपनों को लड़ वाती हैं 

हम जानते हैं सब कुछ फिर भी संभल नहीं पाते 
प्यार महफ़िल और रंजिश इन्हीं के चक्कर में हम खुदको भूल जाते

जीना चाहते हैं कुछ अलग तरीके से फिर भी इन्हीं पुराने ढर्रे के बीच में जिंदगी बिताते हैं

और इंसानियत की तो न पूछो 
किसी कोने की किसी कब्र में दफन कर कर 
हम कभी हैवान तो कभी नकली इंसान बन जाते है

पूजते हैं जीवन भर खुदा को 
और खुद को ही भूल जाते हैं



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