रविवार, 30 अगस्त 2020

ख्वाब ज़िंदा हैं

कुछ नए, ख़्वाब जिंदा हैं
अभी तो, कई रात  ज़िंदा है
हर वक़्त, परखती है मुझको ज़िन्दगी
इसलिए , ज़िन्दगी की खातिर हम भी
कई, मुखौटो के साथ ज़िंदा है
अभी मुझमें , कई जज़्बात ज़िंदा है
जो ना बदले, कई दिनों से , वो हालात ज़िंदा है
परिंदे, बिना पंख के है, तो क्या हुआ
अभी तो, सारा आसमान ज़िंदा है
लोग तो है हर तरफ, फिर भी
ना जाने क्यों लगता है , 
चलता फिरता शमशान ज़िंदा है
कहीं, फेकने को है बहुत कुछ
कहीं , ढकने को कफ़न भी नहीं
इंसान तो,  हर तरफ ज़िंदा है
पर आजकल, ज़रा इंसानियत शर्मिंदा हैं
मै खुद में, नहीं हूं तो क्या हुआ
मेरे ख्वाब तो ज़िंदा है





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