हर आरजू नयी है ,फिर भी आँखों में नमी सी है !
लम्हा लम्हा कुछ इस किदर गुजर रहा है
सूरज को अब असमान निगल रहा है
अब तो चाँद भी मेरे चाँद से मिलाने को बेताब है
तुम आओगी, इस चाँद को भी आस है
तुम्हारे आने के अहसाश को जुदा मत होने देना
मेरे चाँद को चाँद से खफा मत होने देना
बहुत बहुत धन्यवाद.
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