गुरुवार, 22 सितंबर 2011

सपने

कभी सोचता हु ,सपने समेट लू
पर सपने मुरझाये हुए गुलाब की
पंखुरी की तरह झड़ जाते है
मेरे छुते ही बिखर जाते है
कभी आते है तो कभी जाते
कभी हंसते तो कभी रुलाते 
कभी प्यार का अहसास कराते
कभी प्यार का पैगाम लाते
कभी सोचता हूँ ,सब बेगाने है
मेरे सपने ही मेरी ज़िन्दगी के पैमाने है

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